एक थी मिनी एक था काबुलीवाला ।
अरे, वो टैगोर की मिनी नहीं यह इक्कीसवीं सदी के एक पगले अफसानानिगार की मिनी थी। वह अफसानानिगार यूं ही कहानियों के प्लाट की खोज में भटकता फिरता था इधर उधर तो एक सुबह टकरा गया था उससे। अपनी रौ में वह चला जा रहा था यूं ही कि अचानक किसी ने उसकी राह रोक ली थी, जब उसने देखा तो एक नाजनीन आंखें तरेर रही थी। वह हकबकाया सा कुछ कहता कि नाजनीन ने पूछा - कि जनाब आप यह दिन में तारे गिनते कहां जा रहे हैं।
कहां ... माने ... हकबकाया सा अफसानानिगार ने पूछा - मैं तो खोज में जा रहा हूं , कहानी के प्लाट की।
हा हा हा ... नजनीन ने टहोका मारा - कहानी तो यह रही आपके सामने, अब प्लाट आप बना लीजिए ...।
अब जाकर अफसानानिगार ने उसकी आंखों में झांका तो सरल हास्य की एक लौ छू गयी उसे और वह मुस्करा उठा।
मेरा नाम है मिनी, मेरी उम्र है पचास साल पास ही मेरा घर है वहीं अपनी बहन के साथ रहती हूं। चलिए अपना घर दिखा दूं।
इस पर अफसानानिगार मुस्कराया - अरे आप तो बीस-बाइस की लग रही हैं और यह मिनी , यह तो बच्चों का नाम हुआ।
इस पर गोल-गोल आंखें घुमाते हुए मिनी ने बताया कि चूंकि मेरा दिमाग पचास के व्यक्ति सा है इसलिए मैं पचास की हुयी और मेरा मन अभी भी बच्चों की मफिक सरल और चंचल है सो मैं अभी भी मिनी हूं।
यूं मेरा नाम रोज है , रोज रोज वाला भी और रोज वाला भी।
मतलब मेरा मूड रोज रोज बदलता है और मेरी आंखों में लाल गुलाब से लाल डोरे हमेशा तने रहते हैं इसलिए मैं रोज हुयी , हुयी कि नहीं।
और आप कौन हैं जनाब बताएंगे...।
मैं ... सोच में पड गया अफसानानिगार।
मैं ...मैं मैं क्या लगा रखा है ... क्या किसी लडकी से बात नहीं की है आज तक ऐसे हकला क्यों रहे हैं ...।
... मैं हूं कुमार।
अरे आपकी उम्र तो पैंतीस से उपर लग रही है, आप कुमार क्यों कर हैं अब तक।
हां, मैं पैंतीस का हूं पर मेरी आवारगी ने कभी मुझे कुमारावस्था से उपर का होने नहीं दिया।
तो मिस्टर आवारा, क्यों ना आप अपना नाम रख लें काबुलीवाला।
काबुलीवाला ... हैरत में पड सवाल सा किया कुमार ने।
हां काबुलीवाला ... क्यों इस नाम में बुरा क्या है।
...अरे यह तो बूढों सा नाम हुआ
...तो क्या हुआ.. मिनी ने टहोका मारा - अगर बीस साल की मैं मिनी हो सकती हूं तो पैंतीस के आप काबुलीवाला क्यों नहीं हो सकते। प्लीज बन जाइए ना काबुलीवाला, तब मैं आपको कहानी के प्लाट दूंगी नये नये।
आंखें फाडते कुमार ने हां में सिर हिलाया तो लपक कर मिनी ने उसे गले लगा लिया, कि आज से आप हुए मिनी के काबुलीवाले।
मेरे लिए रोज आपको मेवे लाने होगे, झोले में भर भर कर। समझे ना।
कुमार की हैरत से आखें फटी जा रही थी, उसने बहुत कहानियां पढी थीं पर ऐसी आदमकद और दिलेर लडकियां हो सकती हैं दुनिया में उसे पता नहीं था। वह यह सोच ही रहा था कि मिनी ने पूछा - रोज लाएंगे ना मेवे।
कुमार चिंता में पड गया।
तब मिनी चीखी - अरे, मेवे मतलब किताबें। मुझे पढने का बहुत शौक है। और आप हैं अफसानानिगार कुमार तो आप झोले में भर भर कर लाएंगे किताबें मिनी के लिए हर बार।
हां...आं आं आं ... ठीक है, ठीक है।
डेली न्यूज, जयपुर, 2019
अरे, वो टैगोर की मिनी नहीं यह इक्कीसवीं सदी के एक पगले अफसानानिगार की मिनी थी। वह अफसानानिगार यूं ही कहानियों के प्लाट की खोज में भटकता फिरता था इधर उधर तो एक सुबह टकरा गया था उससे। अपनी रौ में वह चला जा रहा था यूं ही कि अचानक किसी ने उसकी राह रोक ली थी, जब उसने देखा तो एक नाजनीन आंखें तरेर रही थी। वह हकबकाया सा कुछ कहता कि नाजनीन ने पूछा - कि जनाब आप यह दिन में तारे गिनते कहां जा रहे हैं।
कहां ... माने ... हकबकाया सा अफसानानिगार ने पूछा - मैं तो खोज में जा रहा हूं , कहानी के प्लाट की।
हा हा हा ... नजनीन ने टहोका मारा - कहानी तो यह रही आपके सामने, अब प्लाट आप बना लीजिए ...।
अब जाकर अफसानानिगार ने उसकी आंखों में झांका तो सरल हास्य की एक लौ छू गयी उसे और वह मुस्करा उठा।
मेरा नाम है मिनी, मेरी उम्र है पचास साल पास ही मेरा घर है वहीं अपनी बहन के साथ रहती हूं। चलिए अपना घर दिखा दूं।
इस पर अफसानानिगार मुस्कराया - अरे आप तो बीस-बाइस की लग रही हैं और यह मिनी , यह तो बच्चों का नाम हुआ।
इस पर गोल-गोल आंखें घुमाते हुए मिनी ने बताया कि चूंकि मेरा दिमाग पचास के व्यक्ति सा है इसलिए मैं पचास की हुयी और मेरा मन अभी भी बच्चों की मफिक सरल और चंचल है सो मैं अभी भी मिनी हूं।
यूं मेरा नाम रोज है , रोज रोज वाला भी और रोज वाला भी।
मतलब मेरा मूड रोज रोज बदलता है और मेरी आंखों में लाल गुलाब से लाल डोरे हमेशा तने रहते हैं इसलिए मैं रोज हुयी , हुयी कि नहीं।
और आप कौन हैं जनाब बताएंगे...।
मैं ... सोच में पड गया अफसानानिगार।
मैं ...मैं मैं क्या लगा रखा है ... क्या किसी लडकी से बात नहीं की है आज तक ऐसे हकला क्यों रहे हैं ...।
... मैं हूं कुमार।
अरे आपकी उम्र तो पैंतीस से उपर लग रही है, आप कुमार क्यों कर हैं अब तक।
हां, मैं पैंतीस का हूं पर मेरी आवारगी ने कभी मुझे कुमारावस्था से उपर का होने नहीं दिया।
तो मिस्टर आवारा, क्यों ना आप अपना नाम रख लें काबुलीवाला।
काबुलीवाला ... हैरत में पड सवाल सा किया कुमार ने।
हां काबुलीवाला ... क्यों इस नाम में बुरा क्या है।
...अरे यह तो बूढों सा नाम हुआ
...तो क्या हुआ.. मिनी ने टहोका मारा - अगर बीस साल की मैं मिनी हो सकती हूं तो पैंतीस के आप काबुलीवाला क्यों नहीं हो सकते। प्लीज बन जाइए ना काबुलीवाला, तब मैं आपको कहानी के प्लाट दूंगी नये नये।
आंखें फाडते कुमार ने हां में सिर हिलाया तो लपक कर मिनी ने उसे गले लगा लिया, कि आज से आप हुए मिनी के काबुलीवाले।
मेरे लिए रोज आपको मेवे लाने होगे, झोले में भर भर कर। समझे ना।
कुमार की हैरत से आखें फटी जा रही थी, उसने बहुत कहानियां पढी थीं पर ऐसी आदमकद और दिलेर लडकियां हो सकती हैं दुनिया में उसे पता नहीं था। वह यह सोच ही रहा था कि मिनी ने पूछा - रोज लाएंगे ना मेवे।
कुमार चिंता में पड गया।
तब मिनी चीखी - अरे, मेवे मतलब किताबें। मुझे पढने का बहुत शौक है। और आप हैं अफसानानिगार कुमार तो आप झोले में भर भर कर लाएंगे किताबें मिनी के लिए हर बार।
हां...आं आं आं ... ठीक है, ठीक है।
डेली न्यूज, जयपुर, 2019
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